HALOALKANES & HALOARENES in 70 Minutes | Full Chapter Revision | Class 12th JEE

By JEE Wallah

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हेलो एल्केन एंड हेलो एरीन्स - माइंड मैप सारांश

मुख्य अवधारणाएँ:

  • हेलो एल्केन, हेलो एरीन्स, SN1, SN2, E1, E2 अभिक्रियाएँ, न्यूक्लियोफाइल, इलेक्ट्रोफाइल, लिविंग ग्रुप, सॉल्वेंट प्रभाव, बोरोडीन हुन्सडीकर अभिक्रिया, फिंकेलस्टीन अभिक्रिया, स्वार्ट्स अभिक्रिया, सैंडमेयर अभिक्रिया, गाटरमान अभिक्रिया, बेंजाइन क्रियाविधि, एनजीपी (नेबरिंग ग्रुप पार्टिसिपेशन), डीडीटी।

1. वर्गीकरण (Classification)

  • हैलोजन की संख्या के आधार पर:
    • मोनोहैलाइड: एक हैलोजन परमाणु।
    • डाईहैलाइड: दो हैलोजन परमाणु।
      • जेम (Gem): एक ही कार्बन पर दो हैलोजन।
      • विसिनल (Vicinal): आसन्न कार्बन पर दो हैलोजन।
    • ट्राईहैलाइड: तीन हैलोजन परमाणु (हेलोफॉर्म)। उदाहरण: क्लोरोफॉर्म (CHCl3)।
  • कार्बन के संकरण (Hybridization) के आधार पर:
    • sp3 संकरित कार्बन से जुड़े हैलोजन:
      • एल्काइल हैलाइड (हेलोएल्केन): 1°, 2°, 3° कार्बन से जुड़े हैलोजन।
      • एलाइलिक हैलाइड: हैलोजन sp3 कार्बन से जुड़ा है, जो sp2 संकरित कार्बन से जुड़ा है।
      • बेंजाइलिक हैलाइड: हैलोजन sp3 कार्बन से जुड़ा है, जो बेंजीन वलय के sp2 संकरित कार्बन से जुड़ा है।
    • sp2 संकरित कार्बन से जुड़े हैलोजन:
      • विनाइल हैलाइड: हैलोजन सीधे sp2 संकरित कार्बन से जुड़ा है।
      • एराइल हैलाइड: हैलोजन सीधे बेंजीन वलय से जुड़ा है।

2. न्यूक्लियोफाइल और इलेक्ट्रोफाइल (Nucleophile and Electrophile)

  • न्यूक्लियोफाइल: नाभिक स्नेही, इलेक्ट्रॉन धनी प्रजाति (ऋणात्मक या लोन पेयर युक्त)।
    • इलेक्ट्रॉन युग्म होमो (HOMO - Highest Occupied Molecular Orbital) से दान करते हैं।
    • होमो की ऊर्जा जितनी अधिक, न्यूक्लियोफाइल उतना ही बेहतर।
    • उदाहरण: ऋणात्मक आयन, लोन पेयर युक्त उदासीन अणु, बहु-आबंध (डबल या ट्रिपल बॉन्ड)।
  • इलेक्ट्रोफाइल: इलेक्ट्रॉन स्नेही, इलेक्ट्रॉन की कमी वाली प्रजाति (धनात्मक या रिक्त कक्षक युक्त)।
    • इलेक्ट्रॉन युग्म लूमो (LUMO - Lowest Unoccupied Molecular Orbital) में स्वीकार करते हैं।
    • लूमो की ऊर्जा जितनी कम, इलेक्ट्रोफाइल उतना ही बेहतर।
    • उदाहरण: धनात्मक आयन, रिक्त कक्षक युक्त उदासीन अणु, विषम परमाणुओं के बीच बहु-आबंध।
  • न्यूक्लियोफाइल बनाम बेस:
    • यदि इलेक्ट्रॉन युग्म H+ को दान किया जाता है, तो वह बेस है।
    • यदि इलेक्ट्रॉन युग्म H+ के अलावा किसी अन्य परमाणु को दान किया जाता है, तो वह न्यूक्लियोफाइल है।
    • त्रिविम बाधा (Steric hindrance) बेसिसिटी को प्रभावित नहीं करती, लेकिन न्यूक्लियोफिलिसिटी को प्रभावित करती है।

3. न्यूक्लियोफिलिसिटी को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Nucleophilicity)

  • सॉल्वेंट के प्रकार:
    • ध्रुवीय प्रोटिक (Polar Protic): प्रोटॉन दान कर सकते हैं (जैसे, H2O, ROH)।
    • ध्रुवीय अप्रोटिक (Polar Aprotic): प्रोटॉन दान नहीं कर सकते (जैसे, ईथर, एसीटोन, DMSO)।
  • डोनर परमाणु समान होने पर:
    • ऋणायन की न्यूक्लियोफिलिसिटी उदासीन प्रजाति से अधिक होती है।
    • समान कार्यात्मक समूह होने पर, त्रिविम बाधा महत्वपूर्ण होती है।
  • डोनर परमाणु भिन्न होने पर:
    • आवर्त में: न्यूक्लियोफिलिसिटी इलेक्ट्रॉन ऋणात्मकता के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
    • समूह में: नीचे जाने पर न्यूक्लियोफिलिसिटी बढ़ती है (होमो ऊर्जा में वृद्धि के कारण)।
  • सॉल्वेंट का प्रभाव:
    • ध्रुवीय प्रोटिक सॉल्वेंट आयनों का विलायकन (Solvation) करते हैं।
    • ध्रुवीय अप्रोटिक सॉल्वेंट धनायनों का बेहतर विलायकन करते हैं।
  • लिविंग ग्रुप क्षमता:
    • जितना अच्छा लिविंग ग्रुप, उतना ही स्थिर ऋणायन।
    • I- > Br- > Cl- > F- (लिविंग ग्रुप क्षमता का क्रम)।

4. एल्काइल हैलाइड के निर्माण की विधियाँ (Preparation Methods of Alkyl Halides)

  • अल्कोहल से:
    • ROH + HX (HX = HCl, HBr): H2SO4 का उपयोग निर्जलीकरण के लिए किया जाता है। यदि X = I, तो H3PO4 का उपयोग किया जाता है (H2SO4, I- को I2 में ऑक्सीकृत कर सकता है)।
    • ROH + PCl5 → RCl + POCl3
    • ROH + PCl3 → RCl + H3PO3
    • ROH + SOCl2 (थायोनिल क्लोराइड) → RCl + SO2 + HCl (डार्जन प्रक्रिया)।
      • पिरिडीन की उपस्थिति में SN2 क्रियाविधि (व्युत्क्रमण)।
      • पिरिडीन की अनुपस्थिति में SNi क्रियाविधि (प्रतिधारण)।
    • ल्यूकास अभिकर्मक (Lucas Reagent): सांद्रित HCl + निर्जल ZnCl2। 1°, 2°, 3° अल्कोहल के बीच अंतर करने के लिए उपयोग किया जाता है।
      • 3° अल्कोहल: तत्काल धुंधलापन।
      • 2° अल्कोहल: 5-10 मिनट में धुंधलापन।
      • 1° अल्कोहल: कमरे के तापमान पर कोई धुंधलापन नहीं।
  • हाइड्रोकार्बन से:
    • एल्केन से: प्रकाश रासायनिक हैलोजनीकरण (मुक्त मूलक हैलोजनीकरण)।
    • एल्कीन से:
      • HX का योग।
      • HBr + पेरोक्साइड (एंटी-मार्कोनिकॉफ योग)।
      • X2 का योग (असंतृप्ति परीक्षण)।
      • HOX का योग।
      • NBS (N-ब्रोमोसक्सिनिमाइड) के साथ एलाइलिक हैलोजनीकरण।
  • नाम अभिक्रियाएँ:
    • फिंकेलस्टीन अभिक्रिया (Finkelstein Reaction): RX + NaI → RI + NaX (एसीटोन में)। SN2 क्रियाविधि।
    • स्वार्ट्स अभिक्रिया (Swarts Reaction): RX + AgF/Hg2F2/CoF2/SbF3 → RF। SN1 क्रियाविधि।
  • बोरोडीन-हुन्सडीकर अभिक्रिया (Borodine-Hunsdiecker Reaction): RCOOAg + Br2 → RBr + CO2 + AgBr। मुक्त मूलक क्रियाविधि। यदि Br2 को I2 से प्रतिस्थापित किया जाता है, तो एस्टर बनता है।

5. भौतिक गुण (Physical Properties)

  • रंगहीन, मीठी गंध।
  • ध्रुवीय, लेकिन पानी में अघुलनशील (हाइड्रोजन आबंध की कमी के कारण)।
  • कार्बनिक सॉल्वैंट्स में घुलनशील।
  • क्वथनांक आणविक भार के साथ बढ़ता है।
  • गलनांक समरूपता से निर्धारित होता है (पैरा > ऑर्थो > मेटा)।

6. रासायनिक अभिक्रियाएँ (Chemical Reactions)

  • नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ (Nucleophilic Substitution Reactions):
    • SN1:
      • यूनिमोल्यूलर, दो-चरणीय।
      • कार्बोकेशन मध्यवर्ती।
      • रेसमीकरण (Racemization)।
      • दर कार्बोकेशन की स्थिरता पर निर्भर करती है: 3° > 2° > 1°।
      • ध्रुवीय प्रोटिक सॉल्वैंट्स द्वारा समर्थित।
    • SN2:
      • बिमोल्यूलर, एक-चरणीय।
      • संक्रमण अवस्था (Transition state)।
      • वॉल्डन व्युत्क्रमण (Walden Inversion)।
      • दर त्रिविम बाधा पर निर्भर करती है: 1° > 2° > 3°।
      • ध्रुवीय अप्रोटिक सॉल्वैंट्स द्वारा समर्थित।
    • SN2': एलाइलिक कार्बन पर प्रतिस्थापन, जब गामा कार्बन पर डिग्री अधिक हो और मजबूत न्यूक्लियोफाइल मौजूद हो।
  • विलोपन अभिक्रियाएँ (Elimination Reactions):
    • E1:
      • दो-चरणीय, कार्बोकेशन मध्यवर्ती।
      • कमजोर बेस और गर्मी की आवश्यकता होती है।
    • E2:
      • एक-चरणीय, मजबूत बेस (जैसे, अल्कोहलिक KOH, NaNH2) की आवश्यकता होती है।
      • 2° और 3° हैलाइड के लिए पसंदीदा।
  • धातुओं के साथ अभिक्रियाएँ (Reactions with Metals):
    • वुर्ट्ज़ अभिक्रिया (Wurtz Reaction): RX + 2Na + RX → R-R + 2NaX (शुष्क ईथर में)।
    • ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक (Grignard Reagent): RX + Mg → RMgX (ईथर में)।
  • एनजीपी (नेबरिंग ग्रुप पार्टिसिपेशन):
    • आसन्न समूह (जैसे, -OH, -OR, -NH2) लिविंग ग्रुप को प्रतिस्थापन में सहायता करते हैं।
    • दो बार SN2 होती है, इसलिए प्रतिधारण होता है।

7. हेलोएरीन के निर्माण की विधियाँ (Preparation Methods of Haloarenes)

  • इलेक्ट्रॉनस्नेही एरोमेटिक प्रतिस्थापन (Electrophilic Aromatic Substitution):
    • हैलोजनीकरण (Cl2, AlCl3 के साथ)।
  • सैंडमेयर अभिक्रिया (Sandmeyer Reaction):
    • एरोमैटिक एमाइन से डाइजोनियम लवण का निर्माण (NaNO2, HCl के साथ)।
    • डाइजोनियम लवण का CuCl/CuBr/KI के साथ अभिक्रिया करके हैलोएरीन का निर्माण।
  • गाटरमान अभिक्रिया (Gattermann Reaction):
    • डाइजोनियम लवण का Cu/HCl के साथ अभिक्रिया करके हैलोएरीन का निर्माण।
  • बालज़-स्कीमैन अभिक्रिया (Balz-Schiemann Reaction):
    • डाइजोनियम लवण का HBF4 के साथ अभिक्रिया करके फ्लोरोबेंजीन का निर्माण।

8. हेलोएरीन की रासायनिक अभिक्रियाएँ (Chemical Reactions of Haloarenes)

  • नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ (Nucleophilic Substitution Reactions):
    • एल्काइल हैलाइड की तुलना में कम प्रतिक्रियाशील (अनुनाद, संकरण, अस्थिर कार्बोकेशन के कारण)।
    • उच्च तापमान और दबाव की आवश्यकता होती है।
    • इलेक्ट्रॉन-आकर्षित समूह (-NO2) प्रतिक्रियाशीलता बढ़ाते हैं।
  • बेंजाइन क्रियाविधि (Benzyne Mechanism):
    • मजबूत बेस (जैसे, NaNH2) की उपस्थिति में होती है।
    • बेंजाइन मध्यवर्ती बनता है।
    • केवल प्रेरणिक प्रभाव (Inductive effect) और त्रिविम बाधा (Steric hindrance) मायने रखते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनस्नेही एरोमेटिक प्रतिस्थापन (Electrophilic Aromatic Substitution):
    • हैलोजनीकरण, नाइट्रीकरण, सल्फोनीकरण, फ्रीडल-क्राफ्ट एल्काइलेशन और एसिलीकरण।

9. पॉलीहैलोजन यौगिक (Polyhalogen Compounds)

  • डीडीटी (DDT):
    • क्लोरल और क्लोरोबेंजीन की सांद्रित H2SO4 की उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा निर्मित।
    • डाईक्लोरोडाईफेनिलट्राईक्लोरोएथेन।
  • क्लोरोफॉर्म (CHCl3):
    • हवा और प्रकाश के संपर्क में आने पर फॉस्जीन (COCl2) में ऑक्सीकृत हो जाता है (विषैली गैस)।
    • फॉस्जीन की उपस्थिति का पता लगाने के लिए एथिल अल्कोहल के साथ अभिक्रिया की जाती है (डाईएथिल कार्बोनेट बनता है)।

10. निष्कर्ष (Conclusion)

हेलो एल्केन और हेलो एरीन्स महत्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक हैं जिनका उपयोग विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं और औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है। उनकी प्रतिक्रियाशीलता और गुण उनकी संरचना और कार्यात्मक समूहों द्वारा निर्धारित होते हैं। SN1, SN2, E1, E2 अभिक्रियाओं और विभिन्न नाम अभिक्रियाओं की समझ इन यौगिकों के साथ काम करने के लिए आवश्यक है।

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