Energy Band Theory || 3D Animated explanation || class 12th physics || Semiconductors ||
By Visual Learning
एनर्जी बैंड थ्योरी: विस्तृत सारांश
मुख्य अवधारणाएँ:
- एनर्जी बैंड थ्योरी
- वैलेंस बैंड
- कंडक्शन बैंड
- एनर्जी गैप
- कंडक्टर
- इंसुलेटर
- सेमीकंडक्टर
1. परिचय:
यह वीडियो एनर्जी बैंड थ्योरी की व्याख्या करता है, जो फिजिक्स का एक कांसेप्ट है और सॉलिड स्टेट में इलेक्ट्रॉन के व्यवहार को समझने में मदद करता है। यह थ्योरी एटॉमिक मॉडल से बेहतर जानकारी प्रदान करती है, जो इलेक्ट्रॉनों को इंडिविजुअल पार्टिकल्स के रूप में दर्शाता है।
2. एनर्जी बैंड का निर्माण:
- मैटर अपनी अवस्था लगातार बदलते हैं, जिससे उनकी प्रॉपर्टीज बदलती रहती हैं। यह बदलाव मैटर में मौजूद एनर्जी के कारण होता है।
- जब एटम्स एक साथ जुड़कर कंपाउंड बनाते हैं, तो उनके एटॉमिक ऑर्बिटल की एनर्जी मिक्स होकर मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल एनर्जीस बनाती हैं।
- इस प्रक्रिया में, इलेक्ट्रॉन ऑर्बिटल ओवरलैप करते हैं, जिससे डिफरेंट एनर्जी लेवल्स बनते हैं। इन एनर्जी लेवल्स के सेट को एनर्जी बैंड कहा जाता है।
3. एनर्जी बैंड के प्रकार:
एनर्जी बैंड दो प्रकार के होते हैं:
- वैलेंस बैंड: एनर्जी बैंड डायग्राम में लोअर बैंड। यह बैंड पार्शल या कंप्लीट इलेक्ट्रॉन से फिल होता है और कभी खाली नहीं होता। इस बैंड के इलेक्ट्रॉन एक्सटर्नल इलेक्ट्रिक फील्ड से एनर्जी गेन करने में सक्षम नहीं होते, इसलिए वे इलेक्ट्रिक करंट कंडक्ट नहीं करते।
- कंडक्शन बैंड: एनर्जी बैंड डायग्राम का अपर बैंड। जीरो केल्विन टेंपरेचर पर इसमें इलेक्ट्रॉन नहीं होते, लेकिन रूम टेंपरेचर पर यह खाली या पार्शल इलेक्ट्रॉन से फिल्ड होता है। इस बैंड के इलेक्ट्रॉन एक्सटर्नल इलेक्ट्रिक फील्ड से एनर्जी गेन कर सकते हैं, जिससे वे इलेक्ट्रिसिटी कंडक्ट करते हैं।
4. एनर्जी गैप:
वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच के एनर्जी डिफरेंस को एनर्जी गैप कहते हैं। यह एनर्जी गैप मटेरियल की इलेक्ट्रिक प्रॉपर्टीज के बारे में बताता है।
5. एनर्जी बैंड के आधार पर सॉलिड का वर्गीकरण:
एनर्जी बैंड के बेसिस पर सॉलिड को तीन कैटेगरी में बांटा गया है:
- कंडक्टर: वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड ओवरलैप करते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन वैलेंस बैंड से कंडक्शन बैंड में आसानी से मूव करते हैं। उदाहरण: कॉपर, एलुमिनियम।
- इंसुलेटर: वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच एनर्जी गैप बहुत ज्यादा होता है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन वैलेंस बैंड से कंडक्शन बैंड में मूव नहीं कर पाते। बैंड गैप ज्यादा होने के कारण इलेक्ट्रॉन को कंडक्शन बैंड में जाने के लिए बहुत ज्यादा एनर्जी की रिक्वायरमेंट होती है। इसलिए इंसुलेटर इलेक्ट्रिसिटी कंडक्ट नहीं कर पाते। उदाहरण: ग्लास, रबर, सिरामिक्स।
- सेमीकंडक्टर: वैलेंस बैंड और कंडक्शन बैंड के बीच बहुत कम गैप होता है, लेकिन इलेक्ट्रॉन को कंडक्शन बैंड में मूव करने के लिए कुछ एनर्जी रिक्वायर्ड होती है, जो कि हम टेंपरेचर बढ़ाकर या फिर सेमीकंडक्टर में इंप्यूट ऐड करके प्रोवाइड कर सकते हैं। ऐसा करने पर इलेक्ट्रॉन एनर्जी गेन करते हैं और कंडक्शन बैंड में मूव कर पाते हैं। इसके बावजूद सेमीकंडक्टर की कंडक्टिविटी कम होती है। उदाहरण: सिलिकॉन, जर्मेनियम।
6. निष्कर्ष:
एनर्जी बैंड थ्योरी सॉलिड स्टेट में इलेक्ट्रॉनों के व्यवहार को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह थ्योरी बताती है कि कैसे एटम्स के जुड़ने से एनर्जी बैंड बनते हैं, और कैसे इन बैंड्स के आधार पर सॉलिड को कंडक्टर, इंसुलेटर और सेमीकंडक्टर के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। एनर्जी गैप मटेरियल की इलेक्ट्रिक प्रॉपर्टीज को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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